छत्तीसगढ़

बच्चों ने सीखी परमात्मा व दादागुरुदेव की आरती व मंगल दीपक की विधी

रायपुर। जिनमणिप्रभ सूरीश्वर की प्रेरणा से प्रति रविवार को बच्चों के मन मस्तिष्क में सुसंस्कार के बीजारोपण करने सीमंधर स्वामी जैन मंदिर में सकारात्मक पहल करते हुए बच्चों को प्रभु नवांगी पूजन, देववंदन विधि सिखाई जाती है। इसी तारतम्य में रविवार को बच्चों को परमात्मा व दादागुरुदेव की आरती व मंगल दीपक की सम्पूर्ण विधी सिखाई गई। अनुमोदना स्वरूप बच्चों को पुरस्कृत किया जाता है।

सीमंधर स्वामी जैन मंदिर व दादाबाड़ी ट्रस्ट के अध्यक्ष संतोष बैद व महासचिव महेन्द्र कोचर ने बताया कि इस रविवारीय सत्र में बच्चों को प्रभु , दादागुरुदेव की आरती व मंगल दीपक के दोहे , दोहों की राग आदि की जानकारी दी गई । जैन मंदिरों में प्रतिदिन प्रातः व संध्याकाल में आरती होती है । महासचिव महेन्द्र कोचर ने कहा कि रायपुर के जैन मंदिरों में संध्या आरती में नगण्य उपस्थित चिंता की बात है , आरती में ज्यादा से ज्यादा श्रावक श्राविकाओं को भाग लेने अभियान चलाया जाना चाहिए । आज बच्चों ने प्रतिदिन आरती में भाग लेने का संकल्प लिया। प्रत्येक रविवार को प्रातः से ही बच्चे पूजन के वस्त्र जैन संस्कृति के परिचायक धोती दुप्पटा पहन कर आते हैं,  तथा अपने मधुर कंठ से प्रभु भक्ति के श्लोक, नवांगी पूजन के दोहों की भाव पूर्ण अभिव्यक्ति से संपूर्ण मंदिर परिसर भक्ति रस से ओतप्रोत हो जाता है। यही नहीं इस प्रयास से बच्चो के माता पिता भी प्रातः से ही पूजन में आने लगे हैं।ट्रस्टी निलेश गोलछा ने बताया कि

ट्रस्ट द्वारा भावी पीढ़ी को संस्कारित करने रात्रि धार्मिक पाठशाला का भी संचालित हो रही है । जय जय आरती आदि जिनंदा , नाभिराया मरुदेवी के नंदा । पहली आरती पूजा कीजे , नरभव पामीने लाहो लीजे ।। आरती के दोहों के सामुहिक स्वर में बच्चों ने सीमंधर स्वामी जिन मंदिर में प्रभु प्रतिमा के सम्मुख आरती के दीपक प्रकाशमान किये तो मंदिर में अलौकिक दृश्य उपस्थित हो गया। परमात्म भक्ति अनुमोदना पुरस्कार के मुख्य लाभार्थी स्वर्गीय गुलाबचंद भंवरीदेवी के आत्म श्रेयार्थ श्रीमती वर्तिका वर्धमान चोपड़ा परिवार थे। ट्रस्टी डॉ योगेश बंगानी ने आगे बताया कि परमात्मा के पश्चात दादागुरुदेव की आरती मंगल दीपक हुआ। साथ ही चारों दादागुरुदेव के सम्मुख विधिपूर्वक गुरुवंदन की प्रक्रिया सिखाई गई। बच्चों ने दादागुरुदेव का विधिपूर्वक खमासमना देकर वन्दन किया। अंत में दादागुरुदेव इक्तिसा का पाठ किया गया।

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